क्या आप जानते हो? 😕🙆मध्यकालीन के शुरुआती में सम्राट पृथ्वीराज चौहान कौन था😕 ?इनका इतिहास क्या है 😕? वह कौन सी जगह का राजा था 😕?वह उनका इतिहास में क्यों नाम लिखा गया 😕?इन सभी के सवाल जानने के लिए इसको पूरा पढ़ें।।
कौन था सम्राट पृथ्वीराज चौहान
भारत के महान शासकों में से एक सम्राट पृथ्वीराज चौहान "हिंदू धर्म" के शासक थे और ऐसा भी कहा जाता है कि वह अंतिम हिंदू शासक थे । वह हिंदू क्षत्रिय राजस्थान के अजमेर के राजा थे और विजय चौहान वंश के शासक थे। इनके पिता का का नाम सोमेश्वर चौहान था। इनकी माता का नाम कपूरी देवी था। पृथ्वीराज चौहान के पिता महाराज सोमेश्वर और उनकी रानी कपूरी देवी के विवाह के 12 वर्षों पश्चात काफी हवन, पूजा करने के बाद , पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1 जून 1166 को गुजरात राज्य के पाटन नगर में हुआ था। इनके जन्म के बाद से ही इनके मुर्त्यु के षड्यंत्र रचे जा रहे थे। पृथ्वीराज चौहान के पिता की सन् 1177 में एक युद्ध के दौरान 11 साल की उम्र मे ही मृत्यु हो गई थी ।इन के छोटे भाई का नाम हरीराज और छोटी बहन का नाम "पृथा" था।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान को पहले पृथ्वीराज तृतीय कहा जाता था।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा व राजतिलक
शिक्षा व युद्ध की कला का ज्ञान
ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान जन्म से ही विभिन्न युद्ध कला में निपुण थे। बाल्यावस्था से उनका बड़ा वैभवपूर्ण वातावरण में पालन-पोषण हुआ था। पृथ्वीराज चौहान ने 5 वर्ष की आयु में ही अजयमेरू (जो कि वर्तमान में अजमेर ) में विग्रहराज द्वारा स्थापित सरस्वती कंटा भरण विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की थी। इसी विद्यापीठ में उन्होंने शिक्षा के अलावा युद्ध कला और शस्त्र विद्या की शिक्षा अपनी गुरु "श्री राम" से प्राप्त की थी 6 भाषाओं में निपुण थे जैसे संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी, और अपभ्रंश। पृथ्वीराज चौहान इन सभी छह भाषा के अलावा मीमांसा, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और शिक्षा शास्त्र का भी ज्ञान था।
इतिहासकार में यह भी कहा गया है कि पृथ्वीराज चौहान को शब्दभेदी बाण चलाने अश्व हाथी, नियंत्रण विद्या, में भी निपुण थे जो कि उन्होंने अपने गुरु श्री राम से शिक्षा प्राप्त की थी।
पृथ्वीराज चौहान का राजतिलक
अजमेर राज्य में राजतिलक
पृथ्वीराज चौहान की 11 वर्ष की आयु में ही उनके पिता की मृत्यु के पश्चात गुजरात से राजस्थान के अजमेर चले गए जहां पर उन्होंने अपनी माता की उपस्थिति में अजमेर की सन् 1177 में राजगद्दी संभाली। और उनकी माता ने पृथ्वीराज चौहान के शासन, और मंत्री परिषद के गठन से लेकर कूटनीति और साम्राज्य के विस्तार तक करने में सहायता की ।
पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली पर उत्तराधिकार
ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान की माता कपूरी देवी के पिता अगंपाल की इकलौती संतान थी। जिसके कारण उनके पिता के वंश में दिल्ली के शासक करने के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं था। तब इनकी माता कपूरी देवी के पिता अंगपाल तोमर के बीच पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का उत्तराधिकार बनाने की इच्छा प्रकट हुई और दोनों के बीच सहमति भी बनी और उसके बाद अंगपाल तोमर ने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का उत्तराधिकार बनाने की घोषणा । और बाद में अंग पाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का राजा बनाया गया।
इस तरह से सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने "अजमेर" और "दिल्ली" राज्य पर एक साथ शासन किया।
पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य का विस्तार
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राजगद्दी ग्रहण करने के बाद सबसे पहले गुरुग्राम और तब गुड्डापुर की जागीरदारी संभाल रहे चचेरे भाई "नागार्जुन" ने पृथ्वीराज चौहान के राज्य अभिषेक से नाराज होने से बगावत की और सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने इसकी बगावत को ही अपनी सैन्य कौशल से कुचलकर विजय प्राप्त की और उसके बाद उन्होंने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए सबसे पहले राजस्थान के छोटे-छोटे राज्यों के खिलाफ अभियान चलाकर उन्हें विजय प्राप्त करके आसानी से हासिल किया। फिर सन् 1182 में उन्होंने खजुराहो और महोबा के चंदेलो( चंदेल का राजा परमर्दिदेव) के खिलाफ अभियान चलाया और वह चंदेल को पराजित करने में सफल रहे। और गुजरात के चालुक्य शासक भीम प्रथम को भी प्राप्त करके अपने कब्जे में किया।
इस तरह से सम्राट पृथ्वीराज चौहान के द्वारा छोटे-छोटे युद्ध जीत में जीत हासिल करके उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया जोकि वर्तमान राजस्थान, दिल्ली ,हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ गुजरात के हिस्सों पर नियंत्रण किया।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता अमर प्रेम कहानी
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी के किस्से राजस्थान में आपको आज भी जगह-2 सुनने को मिल जाएंगे। इन दोनों का ऐसा प्यार था कि दोनों में एक -दूसरे की फोटो देखकर ही एक दूसरे पर मोहित हो गए थे और एक दूसरे को दिल दे बैठे।
यह तो सभी जानने लग गए थे कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान बहुत ही अद्भुत, पराक्रमी, युद्ध कला में निपुण, तीर कमान से तलवारबाजी में निपुण और साहसी, योद्धा थे। और जब इनकी पराक्रमी के किस्से राजकुमारी संयोगिता को सुनने को मिले तो राजकुमारी ने फोटो देखकर ही प्रेम करने लगी और दिल दे बैठी। उसके बाद राजकुमारी संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान को चोरी-छुपके पत्र लिखकर और भेजने लगे। सम्राट पृथ्वीराज चौहान को इनके पत्र मिले और पता चला कि वह उनको प्यार करती है तब पृथ्वीराज चौहान को राजकुमारी संयोगिता की तस्वीर को देख कर प्यार कर बैठे। इस तरह से दोनों के बीच प्यार हो गया और जब इस बात का राजकुमारी संयोगिता के पिता राजा जयचंद को पता चले तो उन्होंने राजकुमारी के लिए स्वंयवर करने का फैसला किया।
जयचंद ने भारत पर अपना संप्रभुता बनाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ कराने का आयोजन किया लेकिन पृथ्वीराज चौहान नहीं चाहते थे कि क्रूर और घमंडी का भारत में प्रभुत्व हो जिसके कारण उन्होंने इस यज्ञ का विरोध किया। इससे जयचंद को पृथ्वीराज चौहान के लिए और भी ज्यादा घृणा बढ़ गई जिससे पृथ्वीराज चौहान को अपमान करने के लिए अपनी बेटी राजकुमारी के स्वयंवर में सभी राजा को को न्योता दिया लेकिन पृथ्वीराज चौहान को न्यौता नहीं भेजा। और पृथ्वीराज चौहान को अपमान करने के लिए द्वारगेट पर पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर लगा दी।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान जयचंद के विचारों को समझ चुका था और उसने राजकुमारी संयोगिता के साथ मिलकर गुप्त योजना बनाई।
स्वयंवर वाले दिन जब राजकुमारी संयोगिता अपने हाथों में वरमाला लेकर एक कर सभी राजाओं के पास से गुजरी तो उन्होंने द्वार गेट पर रखी पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर ही वरमाला डाल दी क्योंकि पृथ्वीराज चौहान अपनी योजना के अनुसार मूर्ति के पीछे खड़े थे इससे स्वयंवर में आए सभी राजा खुद को अपमानित महसूस करने लगे। सम्राट पृथ्वीराज चौहान की गुप्त सूचना के अनुसार जैसे ही उनके मूर्ति में वरमाला डाली तभी पृथ्वीराज चौहान जयचंद के सामने राजकुमारी संयोगिता को उठाया और सभी राजाओं को युद्ध करने के लिए ललकार कर अपने साथ उठाकर ले दिल्ली ले आया।
इसके बाद राजा जयचंद गुस्से में आकर बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान को पकडने के लिए सेना भेजी लेकिन वह पकड़ने में असमर्थ रहे।
कहते हैं कि राजा जयचंद ने अपना बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान के साथ 1189-91 में युद्ध किया जिसमें कई लोगों की जान और सेना को भारी नुकसान हुआ।
पृथ्वीराज चौहान की विशाल सेना
जिस प्रकार पृथ्वीराज चौहान युद्ध कला में मानसिक और शारीरिक रूप से जितने बलवान थे उतनी ही महान शासक पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान की सेना भी विशाल व बलवान थी। पृथ्वीराज चौहान जैसे जैसे युद्ध जीतते गए वैसे वैसे उनकी अपनी सेना को भी बढ़ाते गए।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पास बहुत बड़ी सेना थी जिसमें 300000 सैनिक , 300 हाथी और बड़ी संख्या में घुड़सवार भी थे।
पृथ्वीराज चौहान की पत्नी व पुत्र
कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान की 13 पत्नियां थी जिसमें सबसे ज्यादा चर्चित पत्नी महारानी संयोगिता थी। पृथ्वीराज चौहान की 13 पत्नियां इस प्रकार थी:-
1. जम्भावती पड़ीहारी
2. पवारी इच्छनी
3. दाहिया
4. जालंन्धरी
5.गूजरी
6.बडगूजरी
7. यादवी पद्मावती
8. यादवी शशिव्रत
9. कछवाही
10.पुडीरनी
11. शशिव्रता
12. इन्द्रावती
13. सयोंगीता गहडवाल
इस तरह से पृथ्वीराज चौहान की 13 पत्नियां थी और एक पुत्र था जिसका नाम गोविंद था
सम्राट पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का प्रथम युद्ध
पृथ्वीराज चौहान अपने साम्राज्य विस्तार और की सुव्यवस्था शासन चलाने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनकी इच्छा थी कि पंजाब तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया जाए किंतु उस समय पंजाब पर मोहम्मद गौरी का राज था। मोहम्मद गोरी ने 1186 में गजनबी वंश के अंतिम शासक से लाहौर की गद्दी छीनी और भारतीय हिंदू क्षेत्रों में प्रवेश करने लगा जोकि 1190 ईसवी तक संपूर्ण पंजाब में मोहम्मद गौरी का अधिकार हो चुका था। और वह भटिंडा से अपना राजकाज चलाते थे। पृथ्वीराज चौहान यह बात ही जानते थे कि मोहम्मद गोरी से युद्ध किए बिना पंजाब को नहीं जीता जा सकता था। इसलिए उसने मोहम्मद गोरी से युद्ध करने का निर्णय लेकर पंजाब के लिए विशाल सेना लेकर निकले और तीव्र कार्रवाई करते हुए उसने हांसी( वर्तमान में हरियाणा का हिसार), सरस्वती और सरहिंद(फतेहगढ) के किलो पर अपना अधिकार कर लिया। लेकिन इसी बीच अनहीलवाड़ा में जब मोहम्मद गौरी की सेना ने हमला किया। पृथ्वीराज चौहान का सैन्य बल कमजोर पड़ने के कारण सरहिंद के किले से अपना अधिकार खोना पड़ा।
इसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी से निर्णायक युद्ध करने का निर्णय लिया। जिसके बाद युद्ध के लिए रवाना होकर रावी नदी के तट पर पृथ्वीराज के सेनापति खेत सिंह खंगार की सेना में भयंकर युद्ध हुआ लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला इसी को लेकर पृथ्वीराज चौहान , गोरी को सबक सिखाने के लिए आगे बढ़े और थानेश्वर से 14 मील दूर सरहिंद के किले के पास "तराइन" नामक स्थान पर युद्ध लड़ा गया। तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना ने मोहम्मद गौरी की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा और मोहम्मद गौरी बुरी तरह घायल हो गए इसमें मोहम्मद गोरी की सेना में एक सेनापति ने मोहम्मद गौरी को फुर्ती के साथ सुल्तान के घोड़े की कमान संभाल कर घायल गोरी को मैदान से निकाल कर ले गया। और इसी के साथ मोहम्मद गौरी की सेना भाग निकली और इनके पीछे पृथ्वीराज चौहान की सेना ने 80 मील तक भागते हुए पीछा किया लेकिन वह वापस आए नहीं इस तरह से तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का दूसरा युद्ध
वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 17 बार युद्ध लड़ा गया और पृथ्वीराज चौहान की दरियादिली दिखाते हुए कई बार माफ किया और छोड़ दिया लेकिन तराइन का दूसरा युद्ध और पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी के बीच 18वें युद्ध में जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान को पराजित होना पड़ा। इसका कारण था कि जयचंद का अपनी पुत्री का साथ पृथ्वीराज चौहान के द्वारा अपनी हार को भुला नहीं पाया था और वह अपनी हार में इतना सवार्थ हो गया था कि अपने देश और जाति का स्वाभिमान भी त्याग बैठा था जिसके कारण वह अपने प्रतिशोध के लिए मोहम्मद गोरी के पास अपना दूत भेज कर सैन्य सहायता देने का आश्वासन दिया। और जयचंद से सहायता पाकर गौरी ,पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए तैयार हो गया।
पृथ्वीराज चौहान को जब इस बात का पता चला तो पृथ्वीराज और राज कवि चंदरबरदाई (जो के बचपन के मित्र थे) मे अनेक वीर राजपूत राजाओं से सैन्य सहायता का अनुरोध किया किंतु संयोगिता के कारणों से राजपूत राजा पृथ्वीराज के विरोधी बन चुके थे व कन्नौज नरेश के संकेत पर गोरी के पक्ष में युद्ध करने के लिए तैयार हो गई। पृथ्वीराज चौहान अकेले ही सन 1192 में तराइन के क्षेत्र में दूसरे युद्ध के लिए आमने-सामने खड़े हो गए। पृथ्वीराज चौहान ने बड़ी प्रमुखता से गोरी की सेना से मुकाबला किया लेकिन गौरी के सेना ने जयचंद की सेना अन्य राजपूत सैनिक के साथ मिलकर पृथ्वीराज चौहान की सेना को चारों तरफ से घेर कर बाणों की वर्षा कर दी। परिणाम स्वरूप इस युद्ध से पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया। इस युद्ध कई बड़ी त्रासदी हुई और जयचंद की भी मृत्यु हो गई।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की मृत्यु
पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गोरी अपने ले ले आए और पृथ्वीराज चौहान को "कारावास" में कैद कर दिया गया और इन को दंड के रूप में इनकी आपके गर्म सलाखों से आंख फोड़ दी गई।
चंदरबरदाई और पृथ्वीराज चौहान दोनों ने कारावास में गोरी को मारने की योजना बनाई। जब मोहम्मद गोरी ने चंदरबरदाई से पृथ्वीराज चौहान की अंतिम इच्छा पूछने को कहा में तो उन्होंने बताया की चंदरबरदाई के द्वारा दोहा सुनाने के दौरान वे अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे और जब मोहम्मद गौरी के पास पहुंचाई गई तो उन्होंने इसकी मंजूरी दे दी।
पृथ्वीराज चौहान जहां पर अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले थे वहीं पर मोहम्मद गौरी की महफिल मे मोहम्मद गौरी की मौजूदगी में शुरू होने वाली थी। जैसे ही महफिल शुरू हुई चंदरबरदाई ने काव्यात्मक भाषा में एक पक्ती कही..
"चार बांस चौबीस गज।
"अंगुल अष्ट प्रमाण" ।
"ता ऊपर सुल्तान है" ।
"मत चुके चौहान " ॥
जब यह कविता की पँक्ति मोहम्मद गोरी ने सुनी तो उनके मुंह से "शाब्बास" निकला वैसे ही पृथ्वीराज चौहान ने अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा गोरी को मार डाला। क्योंकि चंदरबरदाई द्वारा सुनाई गई कविता की पँक्ति पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए कहा गया था।
जैसे मोहम्मद गोरी मारा गया इसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान और चंदरबरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे की हत्या कर दी इस तरह से पृथ्वीराज चौहान ने अपनी अपमान का बदला लिया और जब यह समाचार संयोगिता को मिला तो वह भी अपने प्राण त्याग दिये।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं
सम्राट पृथ्वीराज चौहान सबसे बुद्धिमान व शारीरिक रूप से बलवान थे पृथ्वीराज चौहान का इतिहास में काफी महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है इन के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार है:
- पृथ्वीराज चौहान का बचपन का नाम पृथ्वीराज तृतीय था।
- पृथ्वीराज चौहान को 5 वर्ष की आयु में ही सरस्वती कंटर भरण विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त हुई थी।
- पृथ्वीराज चौहान के गुरु का नाम श्री राम था।
- पृथ्वीराज चौहान को युद्ध कला, शस्त्र विद्या व शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे। इसके अतिरिक्त हाथी नियंत्रण में भी निपुण थे।
- पृथ्वीराज चौहान को 6 भाषा आती थी जोकि संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी, और अपभ्रंश। इन 6 भाषा से अलग भी उनको मीमांसा, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और शिक्षा शास्त्र का भी ज्ञान था।
- पृथ्वीराज चौहान की 11 वर्ष की आयु में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई थी जिसके कारण इनको 11 वर्ष में ही राजगद्दी पर बैठना पड़ा।
- पृथ्वीराज चौहान 2 राज्यों के शासक थे जो कि दिल्ली और अजमेर था।
- पृथ्वीराज चौहान की एक विशाल सेना थी जिसमें 3,00,000 सैनिक 300 हाथी और बड़ी संख्या में घुड़सवार थे।
- पृथ्वीराज चौहान की 13 पत्नियां व 1 पुत्र था।
- पृथ्वीराज चौहान की 13 पत्नियों में से सबसे ज्यादा चर्चित पत्नी संयोगिता गढ़वाल थी।
- पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता गढ़वाल की प्रेम कहानी को अमर प्रेम कहानी कहा जाता है।
- पृथ्वीराज चौहान के बचपन के व सबसे करीबी मित्र राजा कवि चंद्रबरदाई थे।
- पृथ्वीराज चौहान ऐसे पहले और आखिरी महान शासक था जिसने अपने दुश्मन को युद्ध में कई बार पराजित करके माफ किया।
- कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान जैसा कोई आखिरी हिंदू शासक नहीं अभी तक हुआ।
- पृथ्वीराज चौहान की कारावास में गर्म सलाखों से आंख फोड़ दी गई थ।
- पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल सन् 1178 से 1192 तक चला।
तो दोस्तों यह मेरे द्वारा सम्राट पृथ्वीराज चौहान के इतिहास के बारे में बनाए गए पोस्ट हैं अगर आपको यह अच्छी लगी हो तो इसको अपने दोस्तों व अन्य जगह शेयर जरूर करें। और हमको फॉलो करें जिससे आपको और भी कई इतिहासकारों के बारे में जानकारी हासिल हो सके।
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