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शनिवार, 25 सितंबर 2021

महंत नरेंद्र गिरि के बारे मे (About of Mahant Narendra Giri)

बाबा नरेद्र गिरी के बारे में जिसको बचपन में कभी बुद्धू व पागल कहा जाता था !!और कुछ दिनों के बाद ही वह एक मुकाम हासिल कर लेते हैं उन बाबा नरेद्र गिरी के बारे में जो आज के समय में प्रयागराज के अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष थे। तो चलिए जानते हैं उनके बारे में:-



इनका जन्म व  परिवार

इनका जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में ही गंगा पार इलाके में सरायममरेज के मियप छतौना गांव में हुआ था जो कि वहां के मूल निवासी भी थे इनके पिता भानु प्रताप सिंह थे जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे इनकी दो बहने और चार भाई थे। यह दूसरे नंबर के थे। इनके दो भाई शिक्षक थे और तीसरे आशा वर्कर है।

इनका बचपन और पढ़ाई

इनके बचपन का नाम नरेंद्र सिंह था और इनको बचपन में बुद्धू के नाम से ज्यादा पुकारते थे क्योंकि सब लोग इसको बुद्धू कहते थे क्योंकि यह पढ़ाई में कमजोर थे और। उन्होंने स्थानीय बाबू सरजू प्रसाद सिंह इंटर कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई की थी लेकिन वह फेल हो गए थे फिर इसके बाद इन्होंने बैंक ऑफ बड़ौदा में भी कुछ महिनो तक नौकरी  की थी। उसके कुछ दिन बाद ही जिन्होंने घर छोड़ दिया था।

इनका  सन्यासी जीवन 

लोगों के ताने मारे जाने के कारण और  गांव के सभी लोगों के बोलने के कारण इन्होंने अपना घर और परिवार त्याग कर सन्यासी जीवन जीने का निर्णय किया और 20 वर्ष की आयु में ही घर को वह परिवार को छोड़कर प्रयागराज में सन्यासी जीवन जीने लगे और श्री निरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि की सेवा में लग गए थे। इन्होंने अपने गांव को त्याग ही दिया था लेकिन अपने गांव के लोगों के प्रति लगाव फिर भी रहता था और उन्होंने परतापुर के स्कूल में हुए शैक्षणिक आयोजन में 2006 से 2010 तक आतीथी भी बनकर  कर रहे थे।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के रूप

श्री निरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि की सेवा करते करते उनको अखाड़ा परिषद की जिम्मेदारी दी गई और कुछ वर्षों बाद ही वह इस मुकाम पर पहुंच गए कि उनको सभी साधु संत प्रमुख साधु संत के रूप में गिने जाने लगे और कुछ वर्षो  बाद ही इनको भारतीय अखिल अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर चुने जाने के बाद अध्यक्ष के रूप में गिना जाने लगा। इनकी गिंनती महान संतो मे गिनी जाती थी।

इन्होंने अध्यक्ष के रूप में व साधु संत के रूप में काफी कई पूजा और व नाम कमाया जिससे इनको सभी साधु संत के रूप में मुख्य अतिथि के रुप में भी गिना जाने लगा था इन्होंने प्रयागराज व  हरिद्वार और अन्य जगह में भी मुख्य साधु संत के रूप में अपनी भूमिका निभाई। यह बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देते थे जिसके कारण यह मंदिरों में हनुमान जी के नाम पर दीया गया पैसा बच्चों की पढ़ाई पर लगाया करते थे। और कहते थे कि जरूरी बच्चों के लिए पैसा मैं दूंगा हनुमान जी के लिए आया गया पैसा सही जगह प्रयोग करना चाहिए।

आत्महत्या की खबर

21 सितंबर 2021 को इन की अचानक आत्महत्या मृत्यु की खबर आती है। लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इन्होंन सच में ही आत्महत्या की थी या इसको किसी के द्वारा मारा गया था। लेकिन इन्होंने अपने आत्महत्या से पहले कुछ लिखा हुआ भी था जिसमें अपनी अंतिम इच्छा व आंत्महत्या करने का कारण लिखा था। लेकिन अभी तक पुलिस सच पता लगाने मे जुटी हुई है जैसे ही इस मौत का सच पता चलेगा तो इस ब्लोग मे आपको बताया जायेगा।

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