क्या आप जानते हैं ?😇🤔वह कौन था?🤔🤔 जो महाभारत काल के समय में जिसका दो टुकड़ों में मिलकर जन्म हुआ😳😳🙄!! और जिसे सबसे क्रूर राजा कहा जाता था😳🙄। तो चलिए आइए विस्तार से जानते हैं :-
कौन था जरासंध ?
यह बृहद्र्थ का पुत्र था जो कि वर्तमान में बिहार (मगध) का राजा था। और भगवान कृष्ण के समय के मथुरा का राजा कंस का ससुर और परम मित्र था। जरासंध ने अपनी दोनों पुत्री (आसित व प्रापित) का विवाह मथुरा का राजा कंस से किया था। जरासंध ने अपने जमाई व परम मित्र की मृत्यु का भगवान श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 17 बार चढ़ाई की थी। जिसकी वजह से भगवान श्री कृष्ण को वहा से भागना पड़ा था और जिसके कारण भगवान श्री कृष्णा का नाम रणछोड़ पड़ा।
जरासंध को उस समय काफी क्रूर माना जाता था और कई राजा इसके भय से अपना राज्य को छोड़कर भाग जाते थे। क्योंकि यह पराजित राजा को अपने कारावास में डाल देता था। इसका कारण था कि वह पराक्रम व शक्तिशाली बनने के लिए 101 राजाओं की बलि देकर महादेव को प्रसन्न करना चाहता था। जरासंध भगवान महादेव का परम भक्त था।
जरासंध का जन्म कैसे हुआ?
राजा जरासंध के पिता का नाम बृहद्रथ था जो कि राजा जरासंध से पूर्व मगध का मगधनरेश थे। इनकी दो पत्नी थी व दोनों को ही समान रूप से मानते थे लेकिन इनके कोई भी संतान नहीं थी और समय के साथ-साथ वह बूढ़े भी होते जा रहे थे। संतान के बिना यह बहुत दुखद थे क्योंकि इनके बाद मगध पर कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था।
एक दिन मगध नरेश ने सुना कि इनके राज्य में ही ऋषि चंडकौशिक आए हुए हैं और वह एक आम के वृक्ष के नीचे बैठे हैं। यह सुनते ही मगध नरेश वहां पर तुरंत पहुंच गए और उन्होंने अपनी समस्या ऋषि चंद कौशिक को बताइ। ऋषि चंद कौशिक को उनकी समस्या सुनकर उन पर दया आ गई। और उन्होंने मगध नरेश बृहद्र्थ को एक फल दिया और बोले कि इसको अपनी पत्नी को खिला देना।
मगध नरेश बृहद्र्थ ने फल लेकर तुरंत महल पहुंच गए और उन्हें पता चला कि फल एक है लेकिन मेरे दो धर्मपत्नी हैं तो उन्होंने उस फल को दो हिस्सों में काटकर दोनों को समान रूप से दे दिया। इसके कुछ दिन बाद ही मगध नरेश की दोनों रानियों को आधा-आधा पुत्र जन्म हुआ। इससे मगध नरेश घबरा गया और उसने इस डर के मारे उस पुत्र के दोनों हिस्से को जंगल में फेंक दिया गया।
इसके फेकने के बाद भी कुछ समय में वहां पर एक राक्षसी गुजरी जिसका नाम जरा था। जब उसने उस शिशु के दोनों हिस्सों को देखा तो उसने उसको उठाकर दोनों को एक करने की कोशिश की जिससे उस शिशु के दोनों हिस्से जुड़ गए और एक शिशु बन गया। इसके बाद में शिशु जोर जोर से रोने लगा जिसकी आवाज महल में दोनों रानियों को सुन गई और वे दोनों रानियां तुरंत वहां पर आ गई उसके साथी मगध नरेश बृहद्र्थ भी वहां पर आ गया। राक्षसी जरा ने उसको सारी बात बताई और अपना परिचय दिया और इसके बाद राक्षसी ने राजा को सौंप दिया। मगध नरेश राजा ने उस राक्षसी के नाम पर ही इस पुत्र का नाम जरासंध रखा। इस पुत्र को महल में ले जाते ही दोनों रानियों कोक में दूध आने लगा।
जरासंध का युद्ध
जरासंध ने वैसे तो कई युद्ध लड़े जिसमें कई राजाओं को परास्त किया और उनको बंदी बनाकर अपने किले में कैद कर लिया जिससे वह 101 राजा होने पर उनकी बलि देकर महादेव से मन चाहा वरदान मांग सके। लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा युद्ध भगवान श्री कृष्ण और भीम के साथ माना जाता है जो कि श्री कृष्ण के साथ 17 बार युद्ध लड़ा गया जिसमें एक बार श्री कृष्ण की और कई बार जरासंध की हार हुई। भगवान श्री कृष्ण से युध्द अपने जीजा व अपने करीबी दोस्त कंस का बदले लेने के लिये किया गया जिसमे युद्ध के साथ मथुरा पर 17 बार चढ़ाई की थी । दूसरा सबसे ज्यादा चर्चित नाम जरासंध और भीम की कुश्ती युद्ध की हुई जो कि 13 दिनों तक चला। इसी युद्ध के अन्त में जरासंध की मृत्यु हुई।
जरासंध की शक्तियों से पांडव को परिचय
भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को जरासंध की शक्ति दिखाने वश्य परीक्षा कराने के लिए उनको उसके महल में लेकर गए जहां पर एक अखाड़े में जरासंध और उनके प्रतिनिधियों के साथ दंड युद्ध लड़ा जा रहा था जिसमें जरा सन ने उनको हराया और अपनी जीत के उसमें सभी वहां पर मौजूद लोगों ने उनके जय जयकार होने के नारे लगाए और तब जरा सर ने सभी को हाल लड़का राज इसमें पांडव को क्रोध आया और उससे एक-एक करके लड़ने लगे जिसमें उनकी हार हुई और उसके बाद फिर किस ने भी अपनी चक से प्रहार किया लेकिन वह मान नहीं पाए इस तरह से जरा सनकी शक्ति और ताकत का पांडव को परीक्षा कराया
जरासंध की मृत्यु
जरासंध के अन्याय व उसके 101 राजा बलि चढ़ाए जाने से रोकने के लिए भगवान कृष्ण और पांडवों के साथ मिलकर एक योजना बनाई इसमें मध्य रात्रि के समय भगवान श्री कृष्ण और पांडव भीम और अर्जुन ब्राह्मण के भेष में जरासंध के महल गए और वहां पर जरासंध को युद्ध के लिये ललकारा यह देखते ही जरासंध समझ गया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है। जरासंध सुन के पूछने पर कि तुम कौन हो भगवान श्री कृष्ण ने अपना और पांडव का वास्तविक परिचय दिया और जरासंध बोला कि तुम फिर आ गए लगता है आज अपनी मृत्यु को ललकारा है। इसके बाद श्री कृष्ण बोले कि मेरे पास अर्जुन और भीम हैं जो कि एक धनुष में माहिर और दूसरा दंड युद्ध में है तुम बोलो किसके साथ युद्ध करना चाहते हो । तब जरासंध ने वह बोला कि दंड युद्ध में ज्यादा भीम का नाम सुना है और भीम के साथ युद्ध करना चाहा ।
फिर भीम और जरासंध के बीच युद्ध शुरू हुआ जो कि 13 दिन तक चला जिसमें कई बार जरासंध और भीम की हार हुई और इमेज राशन के कई बार दो टुकड़े करके इधर से उधर है थे लेकिन मैं अपनी मायावी से दोबारा जुड जाते। फिर 14 दिन भगवान श्री कृष्ण ने एक तिनके को बीच में से तोड़कर स्थित दो भागों को विपरीत दिशा में फेककर इशारा किया। तब भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा समझ कर उसको दो हिस्सों में विभाजित करके दोनों हिस्सों को अलग-अलग दिशा में फेंक दिया जिसके कारण वह दोबारा नहीं जुड़ सका और उसकी मृत्यु हो गई। और तब भगवान श्री कृष्ण ने जरासंध के कैदखाने से 87 राजाओं को छुड़ाया कोर युधिस्टर के राजसूय यज्ञ कराने में सहायता करने के लिए कहा।
जरासंध का पुत्र को राजगद्दी
जब युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ हो गया उसके बाद जरासंध के पुत्र सहदेव को अभयदान देकर मगध का राजा बनाया गया।
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